- 6 Posts
- 3 Comments
बरसों बाद खुली हवा का ,
आया एक था झोंका सा |
झुरमुट में बैठी यादों की ,
जिसे मिली दिलासा सा |
सोने के पिंजरे की थी खिडकी एक खुली हुई ,
मौका देख सुनहरा वो ,
हुयी वहाँ से भाग खड़ी |
खुला चमन और भोर उषा की ,
रवि ने किरण बिखेरी थी ,
इन्द्रधनुषी , सपने सतरंगी
लिए नयन में चहकी सी |
संतोष की साँस लिए ,
फिर उड़ वह अम्बर में चली
नइ उमंग और नए जोश में
थी तो वह आजाद अभी |
चंद दूर ही उड़ पायी थी
आया गिद्धों का एक झुंड
जता गया तु है दुर्बल
नहीं जमेगा तेरा रंग
तु पिंजरे में रहती है ,
पिंजरा ही तेरा , है घर द्वार ,
खाना पानी मिल जाएगा
पिंजरा ही तेरा संसार
एक झरोखा किरण बिखेरे
दूर करे तम की भरमार ,
करते रहे चौकीदारी सब
चाहे जितने पहरेदार |
कर्तव्य समर्पण ही बस ,
उसकी ,नहीं रही पहचान ये
वह कुछ भी कर सकती है
बस रखना इतना ध्यान में |
कुछ उसकी अभिलाषा है ,
उसकी भी कुछ आशा है ,
अन्नपूर्णा , सीता ही नहीं वो
समय – समय पर ज्वाला है |
दुर्गा – काली बनी चण्डिका ,
जब –जब जागा , इनका अभिज्ञान है ,
बरसों बाद एक झरोखे ने छेडा अभियान है |
नहीं पता है उनको कि बस
चाहे हो दरवाजे बंद
आत्ज्ञान अभिज्ञान तो
कर देती जीवन को बुलंद | | | | | | |……….
Read Comments